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मंगलवार, 10 नवंबर 2015

अंदुलिस स्पेन और मुसलमान

अंदुलिस (स्पेन) और मुसलमान 
इंडुलिस के साहिल पर मशहूर सैन्य जर्नल तारिक बिन ज़्याद ने अपनी कश्तियां जला डालीं जिसके नतीजे में मुसलमानो ने 800 साल बड़ी शान शौकत के साथ वहां हुकमरानी की, वहां की जामा मस्जिद कुरतबा आज भी मुसलमानो की अज़मते रिफ्ता पर आंसू बहा रही है,वहां की नहरें ,बागात ,आलिशान महल और कोठियाँ आज भी मुसलमानो को याद करती हैं ,क्या आपको मालूम है इंडुलिस में मुसलमानो पर कब और कैसे ज़वाल आया???
चलिए तारीख के पन्ने पलटते हैं.....
वहां उस वक्त ज़वाल आया जब मुसलमानो ने कलामुल्लाह यानी अल्लाह की किताब कुरआन को पसे पुशत डाल दिया था और फिरको और गिरोहों में बंट गए थे वो एक दुसरे पर काफ़िर होने मुशरिक होने और मुर्तद होने के फतवे लगा रहे थे और अपने गिरोह और अपने खानदान और अपनी कौमियत पर फख्र करने लगे थे एक मुसलमान सरदार दुसरे मुसलमान सरदार को देखना तक गवारा न करता था फिरका परस्ती नासूर बनकर उम्मत को खोखला कर चुकी थी एक दुसरे के खिलाफ ईसाइयो से मदद तलब करने लगे थे मुसलमानो ने फिरका परस्ती के नशे में चूर होकर  ईसाइयो के हाथो खुद अपने मुसलमान भाइयो को ख़ुशी ख़ुशी ज़िबह करवाया जिसकी वजह से ईसाइयो में मुसलमानो का वकार और रौब खत्म हो गया जिसकी वजह से मुसलमानो का वजूद इंडुलिस की ज़मीन में एक स्याह तारीख बनकर रह गया
आज हिन्दुस्तान का मुसलमान भी इंडुलिस की तारीख को दोहराने के दहाने पर खड़ा हुआ है अरब मुमालिक तो इसका आगाज़ कर भी चुके हैं ...ऐसी कौमो को खत्म होना ही चाहिए जिनके दिलों में सिर्फ फिरका परस्ती का मवाद भरा हुआ हो चाहे बज़ाहिर वो वक्त के औलिया बने फिरते हो ।।।

कुरान का एक अजीब मोजज़ा

कुरआन का एक अजीब मोजज़ा
मिस्र के मशहूर कारी,कारी अब्दुल बासित समद से एक शख्स ने पूछा हज़रत आप इतना बेहतरीन और उम्दा कुरान पड़ते हैं क्या आपने कभी कुरआन का कोई मोजज़ा देखा? कारी साहब ने जवाब दिया हाँ मैंने कई मोजज़े देखे
उसने कहा कोई मोजज़ा हमे भी बताइये
कारी साहब ने बताया "एक बार हमारे देश के राष्ट्रपति को मीटिंग के सिलसिले में रूस जाना पड़ा वहां मीटिंग के बाद रूसी सरकार के एक अधिकारी ने उनसे कहा 'क्या मुसलमान बने फिरते हो हमारे जैसे हो जाओ ये मुस्लमानियत छोड़ कर हम तुम्हारी मदद करेंगे और तुम्हारा शुमार तरक्की याफ्ता कौमो में होने लगेगा ' इसके बाद उसने राष्ट्रपति साहब से बात करने की कोशिश की लेकिन बात न बन स्की
दो या तीन साल बाद सदर साहब का फिर से रूस जाना हुआ मुझे खबर मिली की सदर साहब मुझे साथ ले जाना चाहते हैं मुझे बड़ी हैरत हुई मेरा वहाँ क्या काम वहां तो सब काफ़िर और दहरिये नास्तिक रहते हैं जो खुदा को तक नही मानते मुझे तो पाकिस्तान हिंदुस्तान अरब बांग्लादेश जैसे मुल्को में जाना चाहिए था जहाँ मुसलमान रहते हैं  ....खैर मैंने तैयारी की और सदर साहब के साथ रूस चला गया मीटिंग हुई मीटिंग के बाद सदर साहब ने मेरा तारुफ़ करवाया की ये मेरे दोस्त हैं ये आप लोगो के सामने कुछ पड़ेंगे
वो लोग समझ नही सके मैं क्या पडूंगा इसलिए भरे मजमे में खामोशी और सुनने की बेचैनी थी
मुझे इशारा मिला तो मैंने पड़ना शुरू किया और पड़ा भी क्या
"तुआ हा,हमने आप पर कुरान मजीद इसलिये नही उतारा है ताकि आप तकलीफ उठायें बल्कि ऐसे शख्स की नसीहत के लिये उतारा है जो अल्लाह से डरता हो" (सूरह तुआ हा ,14)
"मैं ही अल्लाह हूँ मेरे सिवा कोई माबूद नही तुम मेरी ही इबादत किया करो और मेरे ही लिए नमाज़ पड़ा करो" (सूरह तुआ हा,14)
इन आयतो को सुनकर किसी दौर में हज़रत उमर भी ईमान ले आये थे आगे कहते हैं की जब मैंने दो रुकूअ पड़कर सर उठाया तो कुरआन का मोजज़ा अपनी आँखों से देख रहा था की सामने बैठे नास्तिकों में से चार बन्दे ऐसे थे जो आंसुओ से रो रहे थे ये देखकर सब लोग हैरान हो गए
सदर साहब ने पूछा आप क्यों रो रहे हैं ??
कहने लगे "हमे तो नही मालूम उसने क्या पड़ा है हमारी समझ में उसकी भाषा नही आई लेकिन जब वो पड़ रहा था तो उसकी तासीर से हमारे दिल मोम हो गए और जिस्म का रुआँ रुआँ झुरझरि के साथ खड़ा हो गया और आँखों में आंसू आ गए"
कारी अब्दुल बासित कहते हैं मैंने कुरआन का ये मोजज़ा देखा की जो लोग कुरआन को जानते नहीं मानते नहीं अगर उनके सामने भी कुरआन पड़ा जाए तो उनके सीनो में उतर जाता है उनके दिलों में भी असर  पैदा करता है ।

उम्मत के जाहिल

उम्मत के जाहिल: हमारे लिए एक सबक 
दूकानदार ने चूहे दान लगा कर चूहा पकड़ लिया और फिर उसको मारने के लिए जो तरीका इख़्तियार किया वो इंसानियत को शर्मसार करने के लिए काफी था और खुदा के गज़ब को दावत देने का इंतज़ाम भी, लेकिन एक खुदा की ही ज़ात ऐसी है जो सबसे ज़्यादा सब्र वाली है इसीलिए उसने फ़ौरन ज़मीन को भी नही धँसाया और आसमान से कोई अज़ाब भी नाज़िल नही किया
उस शख्स के लिए खुदा रस्सी तंग ज़रूर करेगा अगर उसने अपने रब से गिड़गिड़ा कर माफ़ी न मांगी
आप जानना चाहेंगे उसने क्या किया??
उसने किया ये कि चूहे पर पेट्रोल डाल कर आज़ाद कर दिया और उसको आग लगा दी
चूहा अपने जलते हुए जिस्म के साथ जिस तकलीफ से मरा यकीनन मन्ज़र हौलनाक था
क्या चूहा इस दर्दनाक सजा का मुस्तहिक़ था ?
क्या प्यारे नबी सल्ल उम्मत को यही तालीम दे कर गए थे ??
मैं मानता हूँ नुक्सान पहुंचाने वाली चीज़ों को मारने का हुक्म है लेकिन इस तरह नहीं ये तरीका इंसानियत के खिलाफ शरीयत के खिलाफ और खुदा के गज़ब को दावत देना है
यकीनन प्यारे नबी सल्ल की हदीस और अल्लाह के कलाम से दूरी ने इंसान को जानवर से बदतर मखलूक बना दिया है
ए लोगो !! रहम करो जमीन वालो पर ताकि आसमान वाला तुम पर रहम करे ।।
शायद आप भी ये पड़कर कुछ सबक हासिल करें इसलिए इस वाकये को पोस्ट करना पड़ा ।

इस्लाम किरदार से फैला है

इस्लाम किरदार से फैला है... खुद पड़कर देखिये इसे
हमारे फेसबुक के एक दोस्त इबरार जदून साहब अपने एक दोस्त का वाक्य बताते हैं वो कहते हैं की
ग्लासगो में हमारा एक साथी था बीमार हो गया हॉस्पिटल में भर्ती हुआ तीन दिन तक भर्ती रहा,चौथे दिन नर्स उससे कहने लगी "आपको जुआइंडिस थी,आप मुझसे शादी कर लें "
उसने कहा क्यों?? मैं मुसलमान हूँ तेरा मेरा साथ नही हो सकता
कहने लगी मैं मुसलमान हो जाउंगी
उसने पूछा क्या वजह है ?
बोली.." मैंने जितनी तवील सर्विस हॉस्पिटल में की है, आजतक किसी मर्द को किसी औरत के सामने आँखे झुकाते नही देखा सिवाए तेरे....तुम मेरी जिंदगी में पहले शख्स हो जो औरत को देखकर आँखे झुका लेते हो....मैं आती हूँ तो तुम आँखे बन्द कर लेते हो
इतनी बड़ी हया सच्चे दीन के सिवा कोई नही सिखा सकता "
आँखों की हिफाज़त ने उसके अंदर इस्लाम दाखिल कर दिया , मुसलमान हो गई ।
दोनों की शादी हुई । वो लड़की अब तक कितनी लड़कियो को इस्लाम में लाने का ज़रिया बन चुकी है और वहां कई ब्रिटिश लड़कियां मुसलमान बन चुकी हैं
इससे पता चलता है इस्लाम तलवार से नहीं फैलता बलकी मुसलमान के किरदार से फैलता है ।

चाँद का दो टुकड़े होना

चाँद का दो टुकड़े होना और एक साइंटिस्ट का बयान
हज़रत अनस रज़ि कहते हैं "मक्का के लोगो ने अल्लाह के रसूल सल्ल से कोई मोजज़ा दिखाने की इल्तिजा करी और तब उन्हे आप सल्ल ने चाँद के दो टुकड़े हो जाने का मोजज़ा दिखलाया "
 (Sahih bukhari Book #56, Hadith #831)
ज़ेग्लाउल एलनेगर ने सन् 2004 में चाँद की इन दो तस्वीरो को जो की अपोलो 10 नामक चन्द्रयान से 1969 में नासा द्वारा ली गई थीं,अपनी किताब में छापा है और आगे लिखा है  "ब्रिटिश मुसलमान डेविड मूसा पिडऑक ने मुझे बताया की 1978 में उसने एक प्रोगाम देखा जिसमे एक अमरीकी स्पेस विज्ञानी जिसके नाम से मैं वाकिफ नही था उसने कहा " चाँद आज से सैकड़ो साल पहले दो हिस्सों में टूटा था और वापस जुड़ा था जिसका पर्याप्त सबूत चाँद की सतह का बीचोबीच से जुड़ा हुआ होना है कंक्रीट का ये जोड़ बा आसानी देखा जा सकता है "
आपको बता दूँ कुरआन और हदीस ए नबवी चाँद के दो टुकड़े होने की घटना की पुष्टि करतीं है
नासा के वैज्ञानिको को जब ये मालूम हुआ की चाँद से जुडी ये हकीकत इस्लाम धर्म की हक़्क़ानियत पर मोहर लगाती है तब उन्होंने चाँद की इन तस्वीरो पर अलग कहानी बनाना शुरू कर दी ताकि गैर मुस्लिमो पर इससे पड़ने वाले असरात को कुछ कम किया जा सके लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी और दानीश्वरो की एक बड़ी तादाद रसूलुल्लाह सल्ल के मोजज़े को हक मानते हुए आपकी रिसालत पर ईमान ला चुकी थी अल्लाह के फ़ज़ल से अक्ल वाले लोग आज भी रिसर्च  करके हिदायत पा रहें है और ये सिलसिला आज भी किसी न किसी रूप में कायम दायम है ।

दुनिया की हकीकत और नास्तिकों के लिए लम्हा ए फ़िक्रिया

दुनिया की हकीकत और नास्तिको के लिए लम्हा ए फ़िक्रिया
एक इंसान ख्वाब में देखता है वो सड़क पार करने की कोशिश कर रहा है बार बार आगे बढ़ता है लेकिन ट्रैफिक ज़्यादा होने की वजह से सड़क पार नही कर पा रहा है कुछ लम्हे बाद वो जैसे ही सड़क के बीच पहुँचता है एक तेज़ रफ्तार बस उसको ज़ोरदार टक्कर मारती है जिससे वो उछल कर कई फीट दूर जा गिरता है पूरा जिस्म खून से भर जाता है एक असहनीय दर्द और बेहोशी का आलम महसूस करता है वो ख्वाब में ही देखता है की जब उसकी आँख खुली तो हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटा हुआ है हाथो और पैरो की हड्डियां टूटी हुई हैं  रिश्तेदार मिलने आ रहे हैं और इज़हारे हमदर्दी कर रहे हैं वो अपनी नाज़ुक हालत और खुद की लाचारी देखकर फूट फूट कर रोने लगता है लोग उसको दिलासा दे रहे हैं लेकिन उसको अपनी ज़िन्दगी सिर्फ बेबस और माज़ूर ही महसूस होती है
अचानक ख्वाब से बेदार होता है तो देखता है की घर में सही सलामत बिस्तर पर लेटा हुआ है न कोई हड्डी टूटी है न जिस्म पर पट्टी बन्धी हुई है कहीं कोई चोट का निशान तक नही है न हाथ पैरो से माज़ूर है ....
उसपर एक हकीकत खुल गई उसने सोचा
इंसान की आँख जब बन्द होती है और गहरी नींद में होता है तो ख्वाब में जो कुछ वो देखता है और महसूस करता है वो सब कुछ हकीकी जिंदगी जैसा ही होता है
लेकिन जब बेदार होता है तो पता चलता है की अरे ये तो आरज़ी ख्वाब था उसकी तो कोई हकीकत नहीं
बिलकुल इसी तरह जब इंसान मर जाता है उसकी आँख बन्द हो जाती है तो वो एक ख्वाब से बेदार होता है उसको दुनिया की ज़िन्दगी एक ख्वाब महसूस होती है अब वो ऐसी ज़िन्दगी में पहुच चूका होता है जिसमे उसको अपनी दुनिया की आरज़ी ज़िन्दगी की हकीकत मालूम हो जाती है दुनिया में बिताया गया एक एक लम्हा उस ख्वाब का हिस्सा होता है जिसको वो हकीकत की ज़िन्दगी समझ बैठता है और उसकी लज़्ज़त का अहसास दुनिया में करता है
मौत के आते ही इंसान दुनिया के ख्वाब से बेदार हो जाता है और असल ज़िन्दगी में कदम रखता है
कुरान में अल्लाह कहता है
"लोग दुनियां की ज़िन्दगी का सिर्फ ज़ाहिरी पहलू जानते हैं और आख़िरत से वो खुद गाफिल हैं" (सूरह रूम 7)
जो लोग आज नास्तिक बने फिरते हैं या आख़िरत की ज़िन्दगी पर ईमान नही रखते दरअसल ऐसे लोग दुनिया की ज़िन्दगी की हकीकत के बारे में सूझ बूझ नही रखते उनको दुनिया की ज़िन्दगी ही हमेशा कायम रहने वाली ज़िन्दगी लगती है वो इस दुनयावी ख्वाब की चकाचौंध में इस कदर खो जाते हैं की उनको अहसास ही नही रहता की वो किसी ख्वाब में मुब्तला है या हकीकत में हैं ....इसका फर्क और हकीकत इंसान को मरने के बाद ज़रूर महसूस होगी ।।
"हर हाल में अल्लाह का वादा सच्चा है बस ये दुनिया की ज़िन्दगी तुम्हे धोखे में न डाले" (सूरह लुकमान 33)
इंसान की दुनियवि ज़िंदगी के मकसद को खुदा तआला ने ब्यान करते हुए कहा है
"वाक्या ये है की जो कुछ भी ये सरो समान ज़मीन पर है उसको हमने ज़मीन की ज़ीनत बनाया है ताकि हम उन लोगो को आज़माएं की उनमे से कौन बेहतर अमल करने वाला है"( सूरह कहफ़ 7)
नास्तिक लोग आख़िरत की ज़िन्दगी की समझ नहीं रखने की वजह से खुदा की ज़ात के मुंकिर हो जाते हैं और मौत के बाद वाली ज़िन्दगी का मज़ाक उड़ाते दिखाई देते हैं ऐसे लोगो को खुदा ताला नसीहत देते हुए कहता है
"और हमने आसमानों और ज़मीेन और जो कुछ भी उनमे है उसको कुछ खेल के तौर पर नहीं बनाया है और अगर हम कोई खिलौना बनाना चाहते और बस येही कुछ हमे करना होता अपने पास से कर लेते"
(सूरः अम्बिया 17-16)
इंसानो को पैदा करने का मकसद साफ़ साफ़ बताया गया है की "हमने इंसान को एक नुत्फे मख़्तूत से पैदा किया ताकि उसको आज़माएं तो,हमने उसको सुनता देखता बनाया"(सूरह दहर 2)
आज नास्तिको की पूरी कोशिश होती है की दुनिया की ज़िन्दगी का पूरा पूरा लुत्फ़ उठायें ऐश करें और अपनी मर्जी से जिंदगी बसर करें क्योंकि उनका ईमान मरने के बाद इंसानी ज़िन्दगी हवा हो जाने पर है उनकी इस गफलत भरी फितरत को कुरान कुछ इस तरह बताता है
"ये लोग दुनियां को दुरुस्त रखते हैं और कयामत के भारी दिन को पसे पुशत छोड़ देते हैं "( सूरह दहर 27)
नास्तिको की ज़िन्दगी भी और इंसानो की तरह जल्दी जल्दी गुज़र जाती है वो बूड़े होकर मरने के करीब पहुँच जाते हैं लेकिन कभी खुदा की ज़ात पर गौर नही करते उनको असल अहसास तब होगा जब आँख बन्द होते ही वो इस "दुनयावी ज़िन्दगी के हसीन ख्वाब" से बेदार होंगे तब हाथ मलने के अलावा कुछ भी उनके पास बाकी न होगा ।।
हम तो बस उनको हकीकत की तरफ बुलाने वाले हैं । सिर्फ अक्ल रखने वाले लोग ही गौरो फ़िक्र करते हैं ।।

वक्त की कदर

 वक्त की कदर 
हाफिज इब्ने हजर रह.एक जलीलुल कद्र मुहद्दिस हैं और आलिमे दीन हैं उन्होंने बुखारी शरीफ की शरह "फतहुल बारी" लिखी है
जब वो बुखारी शरीफ की शरह लिखा करते थे तो कलम को स्याही में डुबोने और उसकी नोक को चाक़ू से छीलने की बार बार ज़रूरत पड़ती थी क्योंकि उस ज़माने में बांस के बने कलम हुआ करते थे आज की तरह डॉट पेन नही होते थे ...
कलम को दुरुस्त करने में और स्याही में बार बार डुबोने में जितना वक्त गुजरता था उतना वक्त भी उनको खाली गुज़ारना गवारा नही था इसलिए उस वक्त को भी ज़िक्र ए खुदा में गुज़ारते थे
जब ज़िक्र इंसान की ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाता है तो उसको बिना ज़िक्र किये एक लम्हा भी चैन नही आता है हर खाली गुज़रने वाला लम्हा उसके लिए कीमती ही होता है ।