वक्त की कदर
हाफिज इब्ने हजर रह.एक जलीलुल कद्र मुहद्दिस हैं और आलिमे दीन हैं उन्होंने बुखारी शरीफ की शरह "फतहुल बारी" लिखी है
जब वो बुखारी शरीफ की शरह लिखा करते थे तो कलम को स्याही में डुबोने और उसकी नोक को चाक़ू से छीलने की बार बार ज़रूरत पड़ती थी क्योंकि उस ज़माने में बांस के बने कलम हुआ करते थे आज की तरह डॉट पेन नही होते थे ...
कलम को दुरुस्त करने में और स्याही में बार बार डुबोने में जितना वक्त गुजरता था उतना वक्त भी उनको खाली गुज़ारना गवारा नही था इसलिए उस वक्त को भी ज़िक्र ए खुदा में गुज़ारते थे
जब ज़िक्र इंसान की ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाता है तो उसको बिना ज़िक्र किये एक लम्हा भी चैन नही आता है हर खाली गुज़रने वाला लम्हा उसके लिए कीमती ही होता है ।
हाफिज इब्ने हजर रह.एक जलीलुल कद्र मुहद्दिस हैं और आलिमे दीन हैं उन्होंने बुखारी शरीफ की शरह "फतहुल बारी" लिखी है
जब वो बुखारी शरीफ की शरह लिखा करते थे तो कलम को स्याही में डुबोने और उसकी नोक को चाक़ू से छीलने की बार बार ज़रूरत पड़ती थी क्योंकि उस ज़माने में बांस के बने कलम हुआ करते थे आज की तरह डॉट पेन नही होते थे ...
कलम को दुरुस्त करने में और स्याही में बार बार डुबोने में जितना वक्त गुजरता था उतना वक्त भी उनको खाली गुज़ारना गवारा नही था इसलिए उस वक्त को भी ज़िक्र ए खुदा में गुज़ारते थे
जब ज़िक्र इंसान की ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाता है तो उसको बिना ज़िक्र किये एक लम्हा भी चैन नही आता है हर खाली गुज़रने वाला लम्हा उसके लिए कीमती ही होता है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें