Translate

Powered By Blogger

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

दुनिया की हकीकत और नास्तिकों के लिए लम्हा ए फ़िक्रिया

दुनिया की हकीकत और नास्तिको के लिए लम्हा ए फ़िक्रिया
एक इंसान ख्वाब में देखता है वो सड़क पार करने की कोशिश कर रहा है बार बार आगे बढ़ता है लेकिन ट्रैफिक ज़्यादा होने की वजह से सड़क पार नही कर पा रहा है कुछ लम्हे बाद वो जैसे ही सड़क के बीच पहुँचता है एक तेज़ रफ्तार बस उसको ज़ोरदार टक्कर मारती है जिससे वो उछल कर कई फीट दूर जा गिरता है पूरा जिस्म खून से भर जाता है एक असहनीय दर्द और बेहोशी का आलम महसूस करता है वो ख्वाब में ही देखता है की जब उसकी आँख खुली तो हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटा हुआ है हाथो और पैरो की हड्डियां टूटी हुई हैं  रिश्तेदार मिलने आ रहे हैं और इज़हारे हमदर्दी कर रहे हैं वो अपनी नाज़ुक हालत और खुद की लाचारी देखकर फूट फूट कर रोने लगता है लोग उसको दिलासा दे रहे हैं लेकिन उसको अपनी ज़िन्दगी सिर्फ बेबस और माज़ूर ही महसूस होती है
अचानक ख्वाब से बेदार होता है तो देखता है की घर में सही सलामत बिस्तर पर लेटा हुआ है न कोई हड्डी टूटी है न जिस्म पर पट्टी बन्धी हुई है कहीं कोई चोट का निशान तक नही है न हाथ पैरो से माज़ूर है ....
उसपर एक हकीकत खुल गई उसने सोचा
इंसान की आँख जब बन्द होती है और गहरी नींद में होता है तो ख्वाब में जो कुछ वो देखता है और महसूस करता है वो सब कुछ हकीकी जिंदगी जैसा ही होता है
लेकिन जब बेदार होता है तो पता चलता है की अरे ये तो आरज़ी ख्वाब था उसकी तो कोई हकीकत नहीं
बिलकुल इसी तरह जब इंसान मर जाता है उसकी आँख बन्द हो जाती है तो वो एक ख्वाब से बेदार होता है उसको दुनिया की ज़िन्दगी एक ख्वाब महसूस होती है अब वो ऐसी ज़िन्दगी में पहुच चूका होता है जिसमे उसको अपनी दुनिया की आरज़ी ज़िन्दगी की हकीकत मालूम हो जाती है दुनिया में बिताया गया एक एक लम्हा उस ख्वाब का हिस्सा होता है जिसको वो हकीकत की ज़िन्दगी समझ बैठता है और उसकी लज़्ज़त का अहसास दुनिया में करता है
मौत के आते ही इंसान दुनिया के ख्वाब से बेदार हो जाता है और असल ज़िन्दगी में कदम रखता है
कुरान में अल्लाह कहता है
"लोग दुनियां की ज़िन्दगी का सिर्फ ज़ाहिरी पहलू जानते हैं और आख़िरत से वो खुद गाफिल हैं" (सूरह रूम 7)
जो लोग आज नास्तिक बने फिरते हैं या आख़िरत की ज़िन्दगी पर ईमान नही रखते दरअसल ऐसे लोग दुनिया की ज़िन्दगी की हकीकत के बारे में सूझ बूझ नही रखते उनको दुनिया की ज़िन्दगी ही हमेशा कायम रहने वाली ज़िन्दगी लगती है वो इस दुनयावी ख्वाब की चकाचौंध में इस कदर खो जाते हैं की उनको अहसास ही नही रहता की वो किसी ख्वाब में मुब्तला है या हकीकत में हैं ....इसका फर्क और हकीकत इंसान को मरने के बाद ज़रूर महसूस होगी ।।
"हर हाल में अल्लाह का वादा सच्चा है बस ये दुनिया की ज़िन्दगी तुम्हे धोखे में न डाले" (सूरह लुकमान 33)
इंसान की दुनियवि ज़िंदगी के मकसद को खुदा तआला ने ब्यान करते हुए कहा है
"वाक्या ये है की जो कुछ भी ये सरो समान ज़मीन पर है उसको हमने ज़मीन की ज़ीनत बनाया है ताकि हम उन लोगो को आज़माएं की उनमे से कौन बेहतर अमल करने वाला है"( सूरह कहफ़ 7)
नास्तिक लोग आख़िरत की ज़िन्दगी की समझ नहीं रखने की वजह से खुदा की ज़ात के मुंकिर हो जाते हैं और मौत के बाद वाली ज़िन्दगी का मज़ाक उड़ाते दिखाई देते हैं ऐसे लोगो को खुदा ताला नसीहत देते हुए कहता है
"और हमने आसमानों और ज़मीेन और जो कुछ भी उनमे है उसको कुछ खेल के तौर पर नहीं बनाया है और अगर हम कोई खिलौना बनाना चाहते और बस येही कुछ हमे करना होता अपने पास से कर लेते"
(सूरः अम्बिया 17-16)
इंसानो को पैदा करने का मकसद साफ़ साफ़ बताया गया है की "हमने इंसान को एक नुत्फे मख़्तूत से पैदा किया ताकि उसको आज़माएं तो,हमने उसको सुनता देखता बनाया"(सूरह दहर 2)
आज नास्तिको की पूरी कोशिश होती है की दुनिया की ज़िन्दगी का पूरा पूरा लुत्फ़ उठायें ऐश करें और अपनी मर्जी से जिंदगी बसर करें क्योंकि उनका ईमान मरने के बाद इंसानी ज़िन्दगी हवा हो जाने पर है उनकी इस गफलत भरी फितरत को कुरान कुछ इस तरह बताता है
"ये लोग दुनियां को दुरुस्त रखते हैं और कयामत के भारी दिन को पसे पुशत छोड़ देते हैं "( सूरह दहर 27)
नास्तिको की ज़िन्दगी भी और इंसानो की तरह जल्दी जल्दी गुज़र जाती है वो बूड़े होकर मरने के करीब पहुँच जाते हैं लेकिन कभी खुदा की ज़ात पर गौर नही करते उनको असल अहसास तब होगा जब आँख बन्द होते ही वो इस "दुनयावी ज़िन्दगी के हसीन ख्वाब" से बेदार होंगे तब हाथ मलने के अलावा कुछ भी उनके पास बाकी न होगा ।।
हम तो बस उनको हकीकत की तरफ बुलाने वाले हैं । सिर्फ अक्ल रखने वाले लोग ही गौरो फ़िक्र करते हैं ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें