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मंगलवार, 10 नवंबर 2015

कल और आज

कल और आज 
कल हज़रत उमर रज़ि ने अपने बेटे को सेब खाता देखकर वो सेब छीन लिया था सिर्फ और सिर्फ इस वजह से क्योंकि उन्हें खुदा का खौफ था
आज हम गरीब से रोटी खाते हुए छीन लेते हैं क्योंकि हमे आख़िरत का खौफ नहीं
कल जब हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज रह को खिलाफत की ज़िम्मेदारी दी गई थी तो जायदाद का बंटवारा कर दिया गया था ऐसा सिर्फ इसलिए किया गया था कहीं कोई ये इलज़ाम न लगा दे की उन्होंने ये जायदाद खलीफा होते हुए बनाई है
आज हमारा ये हाल है की अगर हम इक्तिदार में हो MLA MP या सरकारी नौकर हों तो सोचते हैं कि जब तक इक्तिदार में है ज़्यादा से ज़्यादा दौलत और जायदाद इकठ्ठी कर ली जाए क्या पता दुबारा ये मौका मिले या नही
कल हज़रत अबू बकर सिद्दीक रज़ि ने ज़कात न देने वालो के खिलाफ जेहाद का ऐलान किया था
आज हमारे हमारे "कुछ उलमा" कहते हैं बैंक का सूद जाइज़ है फिक्स डिपॉज़िट और बीमा वगैरह की रकम हलाल है ज़कात देना तो दूर की बात है
कल मस्जिदों में अल्लाह की इबादत होती थी लोगो का ताल्लुक अल्लाह से जोड़ा जाता था
आज मस्जिदों में एक दुसरे के खिलाफ तकरीरें होती है लड़ाई झगड़े खुराफात होती है मस्जिदों पर कब्जे के लिए एक दुसरे पर गोलियां पथराव होता है लोगो को अपने गिरोह से जोड़ने का काम होता है
कल हज़रत अली रज़ि सिर्फ और सिर्फ एक वक्त की नमाज़ का वक्त निकल जाने पर बहुत रोया करते थे
आज हम लौडीस्पीकर पर आज़ान सुनकर अनसुनी कर देते हैं नमाज़ का वक्त तो दूर नमाज़ निकल जाने पर भी कोई अफ़सोस नही करते है
कल एक बार हज़रत उमर रज़ि ईद के दिन रोते हुए देखे गए किसी ने पूछा आज तो ख़ुशी का दिन है क्यों रो रहे हैं तो आपने फरमाया ईद तो उसकी है जिसके रोज़े कबूल हो गए खुदा की कसम!! उमर को तो ये भी नही मालूम उसके रोज़े कबूल हुए भी या नही ?
आज हम पूरे महीने रोज़े छोड़कर या गफलत करते हुए गुज़ारते हुए भी इतना खुश होते हैं जैसे हम बख्श दिए गए हो
कल मुसलमान दीन सीखने की कोशिश में दूर दूर सफर करते थे अपनी मेहनत से हक बात तलाश करते थे हर लम्हा दीन समझने की कोशिश करते थे
आज हमारे पास दीन की किताब पड़ने का वक्त नही अगर फेसबुक पर भी किसी ने हक बात लिख दी हो तो उसे पड़ने का वक्त नही
कल मुसलमानो के दिलो में एक दुसरे के लिए मुहब्बत थी दीन ज़िंदगियों में था
आज एक दुसरे के लिए नफरत बुग्ज है क्योंकि खुराफात ज़िंदगियों का हिस्सा है कुरआन और सुन्नत पसे पुष्ट डाली हुई है
कल भी दीन वही था कुरआन व सुन्नत
आज भी दीन  वही है कुरआन व सुन्नत
बस आज मुसलमान बदल गया वो उस आख़िरत से ज़्यादा इस दुनिया का तलबगार हो गया

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