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मंगलवार, 10 नवंबर 2015

अंदुलिस स्पेन और मुसलमान

अंदुलिस (स्पेन) और मुसलमान 
इंडुलिस के साहिल पर मशहूर सैन्य जर्नल तारिक बिन ज़्याद ने अपनी कश्तियां जला डालीं जिसके नतीजे में मुसलमानो ने 800 साल बड़ी शान शौकत के साथ वहां हुकमरानी की, वहां की जामा मस्जिद कुरतबा आज भी मुसलमानो की अज़मते रिफ्ता पर आंसू बहा रही है,वहां की नहरें ,बागात ,आलिशान महल और कोठियाँ आज भी मुसलमानो को याद करती हैं ,क्या आपको मालूम है इंडुलिस में मुसलमानो पर कब और कैसे ज़वाल आया???
चलिए तारीख के पन्ने पलटते हैं.....
वहां उस वक्त ज़वाल आया जब मुसलमानो ने कलामुल्लाह यानी अल्लाह की किताब कुरआन को पसे पुशत डाल दिया था और फिरको और गिरोहों में बंट गए थे वो एक दुसरे पर काफ़िर होने मुशरिक होने और मुर्तद होने के फतवे लगा रहे थे और अपने गिरोह और अपने खानदान और अपनी कौमियत पर फख्र करने लगे थे एक मुसलमान सरदार दुसरे मुसलमान सरदार को देखना तक गवारा न करता था फिरका परस्ती नासूर बनकर उम्मत को खोखला कर चुकी थी एक दुसरे के खिलाफ ईसाइयो से मदद तलब करने लगे थे मुसलमानो ने फिरका परस्ती के नशे में चूर होकर  ईसाइयो के हाथो खुद अपने मुसलमान भाइयो को ख़ुशी ख़ुशी ज़िबह करवाया जिसकी वजह से ईसाइयो में मुसलमानो का वकार और रौब खत्म हो गया जिसकी वजह से मुसलमानो का वजूद इंडुलिस की ज़मीन में एक स्याह तारीख बनकर रह गया
आज हिन्दुस्तान का मुसलमान भी इंडुलिस की तारीख को दोहराने के दहाने पर खड़ा हुआ है अरब मुमालिक तो इसका आगाज़ कर भी चुके हैं ...ऐसी कौमो को खत्म होना ही चाहिए जिनके दिलों में सिर्फ फिरका परस्ती का मवाद भरा हुआ हो चाहे बज़ाहिर वो वक्त के औलिया बने फिरते हो ।।।

कुरान का एक अजीब मोजज़ा

कुरआन का एक अजीब मोजज़ा
मिस्र के मशहूर कारी,कारी अब्दुल बासित समद से एक शख्स ने पूछा हज़रत आप इतना बेहतरीन और उम्दा कुरान पड़ते हैं क्या आपने कभी कुरआन का कोई मोजज़ा देखा? कारी साहब ने जवाब दिया हाँ मैंने कई मोजज़े देखे
उसने कहा कोई मोजज़ा हमे भी बताइये
कारी साहब ने बताया "एक बार हमारे देश के राष्ट्रपति को मीटिंग के सिलसिले में रूस जाना पड़ा वहां मीटिंग के बाद रूसी सरकार के एक अधिकारी ने उनसे कहा 'क्या मुसलमान बने फिरते हो हमारे जैसे हो जाओ ये मुस्लमानियत छोड़ कर हम तुम्हारी मदद करेंगे और तुम्हारा शुमार तरक्की याफ्ता कौमो में होने लगेगा ' इसके बाद उसने राष्ट्रपति साहब से बात करने की कोशिश की लेकिन बात न बन स्की
दो या तीन साल बाद सदर साहब का फिर से रूस जाना हुआ मुझे खबर मिली की सदर साहब मुझे साथ ले जाना चाहते हैं मुझे बड़ी हैरत हुई मेरा वहाँ क्या काम वहां तो सब काफ़िर और दहरिये नास्तिक रहते हैं जो खुदा को तक नही मानते मुझे तो पाकिस्तान हिंदुस्तान अरब बांग्लादेश जैसे मुल्को में जाना चाहिए था जहाँ मुसलमान रहते हैं  ....खैर मैंने तैयारी की और सदर साहब के साथ रूस चला गया मीटिंग हुई मीटिंग के बाद सदर साहब ने मेरा तारुफ़ करवाया की ये मेरे दोस्त हैं ये आप लोगो के सामने कुछ पड़ेंगे
वो लोग समझ नही सके मैं क्या पडूंगा इसलिए भरे मजमे में खामोशी और सुनने की बेचैनी थी
मुझे इशारा मिला तो मैंने पड़ना शुरू किया और पड़ा भी क्या
"तुआ हा,हमने आप पर कुरान मजीद इसलिये नही उतारा है ताकि आप तकलीफ उठायें बल्कि ऐसे शख्स की नसीहत के लिये उतारा है जो अल्लाह से डरता हो" (सूरह तुआ हा ,14)
"मैं ही अल्लाह हूँ मेरे सिवा कोई माबूद नही तुम मेरी ही इबादत किया करो और मेरे ही लिए नमाज़ पड़ा करो" (सूरह तुआ हा,14)
इन आयतो को सुनकर किसी दौर में हज़रत उमर भी ईमान ले आये थे आगे कहते हैं की जब मैंने दो रुकूअ पड़कर सर उठाया तो कुरआन का मोजज़ा अपनी आँखों से देख रहा था की सामने बैठे नास्तिकों में से चार बन्दे ऐसे थे जो आंसुओ से रो रहे थे ये देखकर सब लोग हैरान हो गए
सदर साहब ने पूछा आप क्यों रो रहे हैं ??
कहने लगे "हमे तो नही मालूम उसने क्या पड़ा है हमारी समझ में उसकी भाषा नही आई लेकिन जब वो पड़ रहा था तो उसकी तासीर से हमारे दिल मोम हो गए और जिस्म का रुआँ रुआँ झुरझरि के साथ खड़ा हो गया और आँखों में आंसू आ गए"
कारी अब्दुल बासित कहते हैं मैंने कुरआन का ये मोजज़ा देखा की जो लोग कुरआन को जानते नहीं मानते नहीं अगर उनके सामने भी कुरआन पड़ा जाए तो उनके सीनो में उतर जाता है उनके दिलों में भी असर  पैदा करता है ।

उम्मत के जाहिल

उम्मत के जाहिल: हमारे लिए एक सबक 
दूकानदार ने चूहे दान लगा कर चूहा पकड़ लिया और फिर उसको मारने के लिए जो तरीका इख़्तियार किया वो इंसानियत को शर्मसार करने के लिए काफी था और खुदा के गज़ब को दावत देने का इंतज़ाम भी, लेकिन एक खुदा की ही ज़ात ऐसी है जो सबसे ज़्यादा सब्र वाली है इसीलिए उसने फ़ौरन ज़मीन को भी नही धँसाया और आसमान से कोई अज़ाब भी नाज़िल नही किया
उस शख्स के लिए खुदा रस्सी तंग ज़रूर करेगा अगर उसने अपने रब से गिड़गिड़ा कर माफ़ी न मांगी
आप जानना चाहेंगे उसने क्या किया??
उसने किया ये कि चूहे पर पेट्रोल डाल कर आज़ाद कर दिया और उसको आग लगा दी
चूहा अपने जलते हुए जिस्म के साथ जिस तकलीफ से मरा यकीनन मन्ज़र हौलनाक था
क्या चूहा इस दर्दनाक सजा का मुस्तहिक़ था ?
क्या प्यारे नबी सल्ल उम्मत को यही तालीम दे कर गए थे ??
मैं मानता हूँ नुक्सान पहुंचाने वाली चीज़ों को मारने का हुक्म है लेकिन इस तरह नहीं ये तरीका इंसानियत के खिलाफ शरीयत के खिलाफ और खुदा के गज़ब को दावत देना है
यकीनन प्यारे नबी सल्ल की हदीस और अल्लाह के कलाम से दूरी ने इंसान को जानवर से बदतर मखलूक बना दिया है
ए लोगो !! रहम करो जमीन वालो पर ताकि आसमान वाला तुम पर रहम करे ।।
शायद आप भी ये पड़कर कुछ सबक हासिल करें इसलिए इस वाकये को पोस्ट करना पड़ा ।

इस्लाम किरदार से फैला है

इस्लाम किरदार से फैला है... खुद पड़कर देखिये इसे
हमारे फेसबुक के एक दोस्त इबरार जदून साहब अपने एक दोस्त का वाक्य बताते हैं वो कहते हैं की
ग्लासगो में हमारा एक साथी था बीमार हो गया हॉस्पिटल में भर्ती हुआ तीन दिन तक भर्ती रहा,चौथे दिन नर्स उससे कहने लगी "आपको जुआइंडिस थी,आप मुझसे शादी कर लें "
उसने कहा क्यों?? मैं मुसलमान हूँ तेरा मेरा साथ नही हो सकता
कहने लगी मैं मुसलमान हो जाउंगी
उसने पूछा क्या वजह है ?
बोली.." मैंने जितनी तवील सर्विस हॉस्पिटल में की है, आजतक किसी मर्द को किसी औरत के सामने आँखे झुकाते नही देखा सिवाए तेरे....तुम मेरी जिंदगी में पहले शख्स हो जो औरत को देखकर आँखे झुका लेते हो....मैं आती हूँ तो तुम आँखे बन्द कर लेते हो
इतनी बड़ी हया सच्चे दीन के सिवा कोई नही सिखा सकता "
आँखों की हिफाज़त ने उसके अंदर इस्लाम दाखिल कर दिया , मुसलमान हो गई ।
दोनों की शादी हुई । वो लड़की अब तक कितनी लड़कियो को इस्लाम में लाने का ज़रिया बन चुकी है और वहां कई ब्रिटिश लड़कियां मुसलमान बन चुकी हैं
इससे पता चलता है इस्लाम तलवार से नहीं फैलता बलकी मुसलमान के किरदार से फैलता है ।

चाँद का दो टुकड़े होना

चाँद का दो टुकड़े होना और एक साइंटिस्ट का बयान
हज़रत अनस रज़ि कहते हैं "मक्का के लोगो ने अल्लाह के रसूल सल्ल से कोई मोजज़ा दिखाने की इल्तिजा करी और तब उन्हे आप सल्ल ने चाँद के दो टुकड़े हो जाने का मोजज़ा दिखलाया "
 (Sahih bukhari Book #56, Hadith #831)
ज़ेग्लाउल एलनेगर ने सन् 2004 में चाँद की इन दो तस्वीरो को जो की अपोलो 10 नामक चन्द्रयान से 1969 में नासा द्वारा ली गई थीं,अपनी किताब में छापा है और आगे लिखा है  "ब्रिटिश मुसलमान डेविड मूसा पिडऑक ने मुझे बताया की 1978 में उसने एक प्रोगाम देखा जिसमे एक अमरीकी स्पेस विज्ञानी जिसके नाम से मैं वाकिफ नही था उसने कहा " चाँद आज से सैकड़ो साल पहले दो हिस्सों में टूटा था और वापस जुड़ा था जिसका पर्याप्त सबूत चाँद की सतह का बीचोबीच से जुड़ा हुआ होना है कंक्रीट का ये जोड़ बा आसानी देखा जा सकता है "
आपको बता दूँ कुरआन और हदीस ए नबवी चाँद के दो टुकड़े होने की घटना की पुष्टि करतीं है
नासा के वैज्ञानिको को जब ये मालूम हुआ की चाँद से जुडी ये हकीकत इस्लाम धर्म की हक़्क़ानियत पर मोहर लगाती है तब उन्होंने चाँद की इन तस्वीरो पर अलग कहानी बनाना शुरू कर दी ताकि गैर मुस्लिमो पर इससे पड़ने वाले असरात को कुछ कम किया जा सके लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी और दानीश्वरो की एक बड़ी तादाद रसूलुल्लाह सल्ल के मोजज़े को हक मानते हुए आपकी रिसालत पर ईमान ला चुकी थी अल्लाह के फ़ज़ल से अक्ल वाले लोग आज भी रिसर्च  करके हिदायत पा रहें है और ये सिलसिला आज भी किसी न किसी रूप में कायम दायम है ।

दुनिया की हकीकत और नास्तिकों के लिए लम्हा ए फ़िक्रिया

दुनिया की हकीकत और नास्तिको के लिए लम्हा ए फ़िक्रिया
एक इंसान ख्वाब में देखता है वो सड़क पार करने की कोशिश कर रहा है बार बार आगे बढ़ता है लेकिन ट्रैफिक ज़्यादा होने की वजह से सड़क पार नही कर पा रहा है कुछ लम्हे बाद वो जैसे ही सड़क के बीच पहुँचता है एक तेज़ रफ्तार बस उसको ज़ोरदार टक्कर मारती है जिससे वो उछल कर कई फीट दूर जा गिरता है पूरा जिस्म खून से भर जाता है एक असहनीय दर्द और बेहोशी का आलम महसूस करता है वो ख्वाब में ही देखता है की जब उसकी आँख खुली तो हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटा हुआ है हाथो और पैरो की हड्डियां टूटी हुई हैं  रिश्तेदार मिलने आ रहे हैं और इज़हारे हमदर्दी कर रहे हैं वो अपनी नाज़ुक हालत और खुद की लाचारी देखकर फूट फूट कर रोने लगता है लोग उसको दिलासा दे रहे हैं लेकिन उसको अपनी ज़िन्दगी सिर्फ बेबस और माज़ूर ही महसूस होती है
अचानक ख्वाब से बेदार होता है तो देखता है की घर में सही सलामत बिस्तर पर लेटा हुआ है न कोई हड्डी टूटी है न जिस्म पर पट्टी बन्धी हुई है कहीं कोई चोट का निशान तक नही है न हाथ पैरो से माज़ूर है ....
उसपर एक हकीकत खुल गई उसने सोचा
इंसान की आँख जब बन्द होती है और गहरी नींद में होता है तो ख्वाब में जो कुछ वो देखता है और महसूस करता है वो सब कुछ हकीकी जिंदगी जैसा ही होता है
लेकिन जब बेदार होता है तो पता चलता है की अरे ये तो आरज़ी ख्वाब था उसकी तो कोई हकीकत नहीं
बिलकुल इसी तरह जब इंसान मर जाता है उसकी आँख बन्द हो जाती है तो वो एक ख्वाब से बेदार होता है उसको दुनिया की ज़िन्दगी एक ख्वाब महसूस होती है अब वो ऐसी ज़िन्दगी में पहुच चूका होता है जिसमे उसको अपनी दुनिया की आरज़ी ज़िन्दगी की हकीकत मालूम हो जाती है दुनिया में बिताया गया एक एक लम्हा उस ख्वाब का हिस्सा होता है जिसको वो हकीकत की ज़िन्दगी समझ बैठता है और उसकी लज़्ज़त का अहसास दुनिया में करता है
मौत के आते ही इंसान दुनिया के ख्वाब से बेदार हो जाता है और असल ज़िन्दगी में कदम रखता है
कुरान में अल्लाह कहता है
"लोग दुनियां की ज़िन्दगी का सिर्फ ज़ाहिरी पहलू जानते हैं और आख़िरत से वो खुद गाफिल हैं" (सूरह रूम 7)
जो लोग आज नास्तिक बने फिरते हैं या आख़िरत की ज़िन्दगी पर ईमान नही रखते दरअसल ऐसे लोग दुनिया की ज़िन्दगी की हकीकत के बारे में सूझ बूझ नही रखते उनको दुनिया की ज़िन्दगी ही हमेशा कायम रहने वाली ज़िन्दगी लगती है वो इस दुनयावी ख्वाब की चकाचौंध में इस कदर खो जाते हैं की उनको अहसास ही नही रहता की वो किसी ख्वाब में मुब्तला है या हकीकत में हैं ....इसका फर्क और हकीकत इंसान को मरने के बाद ज़रूर महसूस होगी ।।
"हर हाल में अल्लाह का वादा सच्चा है बस ये दुनिया की ज़िन्दगी तुम्हे धोखे में न डाले" (सूरह लुकमान 33)
इंसान की दुनियवि ज़िंदगी के मकसद को खुदा तआला ने ब्यान करते हुए कहा है
"वाक्या ये है की जो कुछ भी ये सरो समान ज़मीन पर है उसको हमने ज़मीन की ज़ीनत बनाया है ताकि हम उन लोगो को आज़माएं की उनमे से कौन बेहतर अमल करने वाला है"( सूरह कहफ़ 7)
नास्तिक लोग आख़िरत की ज़िन्दगी की समझ नहीं रखने की वजह से खुदा की ज़ात के मुंकिर हो जाते हैं और मौत के बाद वाली ज़िन्दगी का मज़ाक उड़ाते दिखाई देते हैं ऐसे लोगो को खुदा ताला नसीहत देते हुए कहता है
"और हमने आसमानों और ज़मीेन और जो कुछ भी उनमे है उसको कुछ खेल के तौर पर नहीं बनाया है और अगर हम कोई खिलौना बनाना चाहते और बस येही कुछ हमे करना होता अपने पास से कर लेते"
(सूरः अम्बिया 17-16)
इंसानो को पैदा करने का मकसद साफ़ साफ़ बताया गया है की "हमने इंसान को एक नुत्फे मख़्तूत से पैदा किया ताकि उसको आज़माएं तो,हमने उसको सुनता देखता बनाया"(सूरह दहर 2)
आज नास्तिको की पूरी कोशिश होती है की दुनिया की ज़िन्दगी का पूरा पूरा लुत्फ़ उठायें ऐश करें और अपनी मर्जी से जिंदगी बसर करें क्योंकि उनका ईमान मरने के बाद इंसानी ज़िन्दगी हवा हो जाने पर है उनकी इस गफलत भरी फितरत को कुरान कुछ इस तरह बताता है
"ये लोग दुनियां को दुरुस्त रखते हैं और कयामत के भारी दिन को पसे पुशत छोड़ देते हैं "( सूरह दहर 27)
नास्तिको की ज़िन्दगी भी और इंसानो की तरह जल्दी जल्दी गुज़र जाती है वो बूड़े होकर मरने के करीब पहुँच जाते हैं लेकिन कभी खुदा की ज़ात पर गौर नही करते उनको असल अहसास तब होगा जब आँख बन्द होते ही वो इस "दुनयावी ज़िन्दगी के हसीन ख्वाब" से बेदार होंगे तब हाथ मलने के अलावा कुछ भी उनके पास बाकी न होगा ।।
हम तो बस उनको हकीकत की तरफ बुलाने वाले हैं । सिर्फ अक्ल रखने वाले लोग ही गौरो फ़िक्र करते हैं ।।

वक्त की कदर

 वक्त की कदर 
हाफिज इब्ने हजर रह.एक जलीलुल कद्र मुहद्दिस हैं और आलिमे दीन हैं उन्होंने बुखारी शरीफ की शरह "फतहुल बारी" लिखी है
जब वो बुखारी शरीफ की शरह लिखा करते थे तो कलम को स्याही में डुबोने और उसकी नोक को चाक़ू से छीलने की बार बार ज़रूरत पड़ती थी क्योंकि उस ज़माने में बांस के बने कलम हुआ करते थे आज की तरह डॉट पेन नही होते थे ...
कलम को दुरुस्त करने में और स्याही में बार बार डुबोने में जितना वक्त गुजरता था उतना वक्त भी उनको खाली गुज़ारना गवारा नही था इसलिए उस वक्त को भी ज़िक्र ए खुदा में गुज़ारते थे
जब ज़िक्र इंसान की ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाता है तो उसको बिना ज़िक्र किये एक लम्हा भी चैन नही आता है हर खाली गुज़रने वाला लम्हा उसके लिए कीमती ही होता है ।

जौहरी बनिए

जौहरी बनिए जनाब....ताकि उनकी पहचान कर सकें 
हीरे तो कई तरह के होते हैं कुछ ऐसे बहुमूल्य होते हैं जो दुनियां में बहुत कम दुर्लभ तादाद में पाये जाते हैं और कुछ मूल्यवान होते हैं जिनकी तादाद दुर्लभ हीरो से कुछ ज़्यादा होती है बाकी कुछ हीरे ऐसे होतें है जो कसीर तदाद में मिल जाते है ....लेकिन ये सब हीरे ही होते हैं और इनकी वैल्यु और धातुओ से ज़्यादा समझी जाती है
इन हीरो में दुर्लभ हीरे की पहचान करना हर किसी के बस की बात नही होती बल्कि इसके लिए हर किस्म के हीरे की जानकारी उसकी कैफियत और उसकी पहचान करने का इल्म होना ज़रूरी होता है इसलिए जौहरी ही इनकी पहचान कर सकता है बिलकुल इसी तरह उलमा हर फिरके में होते हैं और हक परस्त उलमा बहुत कम होते है जो की दुर्लभ श्रेणी में आते हैं आसानी से गली कूचे में नही मिलते इसके अलावा इस तरह के उलमा खूब मिल जाते हैं जो होते तो उलमा ही हैं लेकिन हक छुपाने वाले होते हैं या सिर्फ अपने तक ही रखते हैं एक केटेगरी उलमा की वो है जो सिर्फ उलमा बने फिरते हैं लेकिन उनका हक बात से कोई सरोकार नही होता अपने मन की करते हैं
उलमा ए हक की पहचान करना भी एक हुनर है इसके लिए हर फिरके के लोगो को चाहिए उलमा ए हक को पहचान करने की कुव्वत और हुनर को अपने अंदर पैदा करें ....ये ज़रूरी नही की आप जिस फिरके को हक समझकर बैठे हैं उस फिरके के सारे उलमा हक परस्त हों ऐसा हरगिज़ नही हो सकता
अगर कोई फिर भी दावा करे की फलां फिरके के उलमा हक परस्त दीन ए हक ब्यान करने वाले हैं तो ये सिर्फ अंधभक्ति के अलावा कुछ भी नहि ....  जब आप जौहरी होंगे तो भला कैसे हीरे की क्वालिटी में फर्क नही कर पाएंगे ???

कल और आज

कल और आज 
कल हज़रत उमर रज़ि ने अपने बेटे को सेब खाता देखकर वो सेब छीन लिया था सिर्फ और सिर्फ इस वजह से क्योंकि उन्हें खुदा का खौफ था
आज हम गरीब से रोटी खाते हुए छीन लेते हैं क्योंकि हमे आख़िरत का खौफ नहीं
कल जब हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज रह को खिलाफत की ज़िम्मेदारी दी गई थी तो जायदाद का बंटवारा कर दिया गया था ऐसा सिर्फ इसलिए किया गया था कहीं कोई ये इलज़ाम न लगा दे की उन्होंने ये जायदाद खलीफा होते हुए बनाई है
आज हमारा ये हाल है की अगर हम इक्तिदार में हो MLA MP या सरकारी नौकर हों तो सोचते हैं कि जब तक इक्तिदार में है ज़्यादा से ज़्यादा दौलत और जायदाद इकठ्ठी कर ली जाए क्या पता दुबारा ये मौका मिले या नही
कल हज़रत अबू बकर सिद्दीक रज़ि ने ज़कात न देने वालो के खिलाफ जेहाद का ऐलान किया था
आज हमारे हमारे "कुछ उलमा" कहते हैं बैंक का सूद जाइज़ है फिक्स डिपॉज़िट और बीमा वगैरह की रकम हलाल है ज़कात देना तो दूर की बात है
कल मस्जिदों में अल्लाह की इबादत होती थी लोगो का ताल्लुक अल्लाह से जोड़ा जाता था
आज मस्जिदों में एक दुसरे के खिलाफ तकरीरें होती है लड़ाई झगड़े खुराफात होती है मस्जिदों पर कब्जे के लिए एक दुसरे पर गोलियां पथराव होता है लोगो को अपने गिरोह से जोड़ने का काम होता है
कल हज़रत अली रज़ि सिर्फ और सिर्फ एक वक्त की नमाज़ का वक्त निकल जाने पर बहुत रोया करते थे
आज हम लौडीस्पीकर पर आज़ान सुनकर अनसुनी कर देते हैं नमाज़ का वक्त तो दूर नमाज़ निकल जाने पर भी कोई अफ़सोस नही करते है
कल एक बार हज़रत उमर रज़ि ईद के दिन रोते हुए देखे गए किसी ने पूछा आज तो ख़ुशी का दिन है क्यों रो रहे हैं तो आपने फरमाया ईद तो उसकी है जिसके रोज़े कबूल हो गए खुदा की कसम!! उमर को तो ये भी नही मालूम उसके रोज़े कबूल हुए भी या नही ?
आज हम पूरे महीने रोज़े छोड़कर या गफलत करते हुए गुज़ारते हुए भी इतना खुश होते हैं जैसे हम बख्श दिए गए हो
कल मुसलमान दीन सीखने की कोशिश में दूर दूर सफर करते थे अपनी मेहनत से हक बात तलाश करते थे हर लम्हा दीन समझने की कोशिश करते थे
आज हमारे पास दीन की किताब पड़ने का वक्त नही अगर फेसबुक पर भी किसी ने हक बात लिख दी हो तो उसे पड़ने का वक्त नही
कल मुसलमानो के दिलो में एक दुसरे के लिए मुहब्बत थी दीन ज़िंदगियों में था
आज एक दुसरे के लिए नफरत बुग्ज है क्योंकि खुराफात ज़िंदगियों का हिस्सा है कुरआन और सुन्नत पसे पुष्ट डाली हुई है
कल भी दीन वही था कुरआन व सुन्नत
आज भी दीन  वही है कुरआन व सुन्नत
बस आज मुसलमान बदल गया वो उस आख़िरत से ज़्यादा इस दुनिया का तलबगार हो गया

हैकल सुलेमानी की तारीख और यहूदी

हैकल सुलेमानी की तारीख़ और यहूदी 
हैकल सुलेमानी के बारे में जानने के लिए तारीख के पन्नों को पलटना ज़रूरी है इसलिए ये बात याद रखने के काबिल है के यहूदी हज़रत बीबी सायरा की औलाद हैं जबकि नबी ए अकरम सल लल्लाहो अलैहि वसललम इब्राहीम अलैहि सलाम की दूसरी बीबी हज़रत बीबी हाजरा की औलाद में से हैं हज़रत इस्माइल अलैहि सलाम हज़रत बीबी हाजरा के बेटे हैं इब्राहिम अलैहि सलाम हज़रत बीबी हाजरा को हज़रत बीबी सायरा की ख्वाहिश और अल्लाह तआला के हुक्म पर मौजूदा मक्का की बे आबाद ज़मीन पर ले गए अल्लाह तआला को बीबी हाजरा और हज़रत इस्माइल अलैहि सलाम की न्याज़मन्दी और ख़ुशनूदी इतनी पसन्द आई की इस मकाम पर हज़रत हाजरा का नन्हे इस्माइल के लिए भाग दौड़ करना हज का रुकून बना दिया गया आबे ज़मज़म जारी कर दिया गया और हज़रत इस्माइल के अल्लाह की राह में कुरबान होने की अदा को कुर्बानी बना दिया गया फिर इस मकाम को पहला बैतुल्लाह बना दिया गया ज़मीन पर पहला बैतुल्लाह येही था और कयामत तक ये ही रहेगा 
ये बीबी हाजरा और उनकी औलाद के लिए अल्लाह तआला की तरफ से बहुत बड़ी इज़्ज़त अफ़ज़ाई वाली बात थी ये ही बात आजतक यहूदियो को हज़म नही हुई वो ये समझते हैं की ये कैसे हो सकता है के हम अल्लाह की सबसे लाडली कौम होने के बावजूद हमे इस बैतुल्लाह की जानिब मुह करके इबादत करनी पड़े जिसे हज़रत इस्माइल अलैहि सलाम ने अपने वालिद हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के साथ मिलकर बनाया हो 
वो हज़रत इस्माइल अलैहि सलाम को सिरे से नबी ही नही समझते हैं वो समझते हैं की नबूवत पर सिर्फ उनका ही हक है वो हज़रत हाजरा और हज़रत इस्माइल अलैहि सलाम की बेहद तौहीन करते हैं और बेहद गुस्ताखी भरे अल्फ़ाज़ इस्तेमाल करते हैं मज़ाक उड़ाते हैं आम तौर पर ख्याल किया जाता है की नबी करीम सललल्लाहो अलैहि वसललम के खाके व गुस्ताखाना कार्टून कुछ अखबार इत्तेफाक से बनाते हैं लेकिन ऐसा हरगिज़ नही है इसके पीछे यहूदियो की सदियो पुरानी नफरत छुपी हुई है जो उनको बीबी हाजरा अलैहिस्लाम से थी 
जैसा की ऊपर बताया गया है की यहूदियो को तास्सुब की वजह से बैतुल्लाह की तरफ मुह करके इबादत करने से बहुत तकलीफ थी इसलिए वो चाहते थे उनका क़िबला कोई और होना चाहिए चुनाचे एक वक्त ऐसा आया के अल्लाह ने उनकी आज़माइश के लिए के वो राहे रास्त पर आते हैं या नहीं, कुछ वक्त के लिए मौजूदा मक़ामे अक्सा की तरफ मुह करके इबादत करने का हुक्म फ़रमाया 
हैकल सुलेमानी की तामीर :
ये दरहक़ीक़त एक मस्जिद थी इस गलत फहमी का दूर होना भी बेहद ज़रूरी है क्योंकि बैतुल्लाह रोये ज़मीन पर सिर्फ एक ही तामीर किया गया था जो हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने मक्का में अल्लाह के हुक्म से तामीर किया था इसके अलावा पूरे कुर्रा ए अर्ज़ पर कोई दूसरा क़िबला या बैतुल्लाह तामीर नही किया गया था मैं मस्जिद ए अक्सा को हैकल के नाम से इसलिए लिखूंगा ताकि समझने में आसानी रहे 
हैकल सुलेमानी की तामीर से पहले यहूदियो के यहां किसी भी बाकायदा हैकल का न तो कोई वुजूद और न इसका कोई तव्वुर था इस कौम की बद्दुओं वाली खाना बदोश ज़िन्दगी थी उनका हैकल या माबद एक खेमा था इस खेमे में ताबूत ए सकीना रखा होता था जिसकी जानिब ये रुख करके इबादत किया करते थे रवायत के मुताबिक़ के ताबूत जिस लकड़ी से तैयार किया गया था उसे शमशाद कहते हैं और उसे जन्नत से हज़रत आदम अलैहि सलाम के पास भेजा गया था ये ताबूत नस्ल दर नस्ल अम्बिया से होता हुआ मूसा अलैहि सलाम तक पहुंचा था इस मुक़द्दस सन्दूक में हज़रत मूसा अलैहि सलाम का असा (छड़ी) मन्ना वस सलवा और दूसरे अम्बिया अलैहिस्सलाम की यादगारें थी यहूदी इस ताबूत की बरकत से हर मुसीबत और परेशानी का हल निकाल लिया करते थे दूसरी कौमो के साथ जंगों में भी इस सन्दूक को लश्कर के आगे रखा करते थे इसकी बरकत से जंगो में फतह हासिल किया करते थे 
जब हज़रत दाऊद अलैहि सलाम को बादशाहत अता हुई तो आपने अपने लिए एक बाकायदा बेहतरीन महल तामीर करवाया एक दिन उनके ज़हन में ख्याल आया के मैं तो खुद महल में रहता हूँ जबकि मेरी कौम का माबद आज भी खेमे में रखा हुआ है 
"बादशाह ने कहा मैं तो देवदार की शानदार लकड़ी से बने महल में रहता हूँ मगर खुदा वन्द का ताबूत एक खेमे में पड़ा हुआ है "
(स्मोवियल2:4)
चुनांचे आपने हैकल की तामीर का इरादा किया और उसके लिए एक जगह का चुनाव किया गया  विशेषज्ञयो ने आपको मशवरा दिया के इस हैकल की तामीर आपके दौर में नामुमकिन है आप इसका जिम्मा अपने बेटे सुलेमान अलैहि सलाम को सौंप दीजिये चुनांचे हज़रत सुलेमान अलैहि सलाम ने अपने दौरे हुकूमत के चौथे साल में इसकी तामीर का बाकायदा आगाज़ कर दिया आज इसकी बनावट और मज़बूती से अंदाज़ा किया जा सकता है ये तामीर इंसानो के बस की बात नहीं थी इतने भारी और बड़े पथरो को जिन्नातो की ताकत से चुना गया था जिन पर हज़रत सुलेमान अलैहि सलाम की हुकूमत थी ये हैकल माबद या मस्जिद बहुत ही आलिशान   और वसीअ थी इसमें तीन हिस्से थे बेरूनी हिस्से में आम लोग इबादत किया करते थे इससे अगले हिस्से में उलमा जो की अम्बिया की औलादो में से होते थे उनकी इबादत की जगह थी इसके अगले हिस्से में जो की सबसे ज़्यादा मुक़द्दस समझा जाता था उसमे ताबूत ए सकीना रखा गया था इस हिस्से में किसी को भी दाखिल होने की इजाज़त नही थी सिवाय सबसे बड़े आलिम पेश इमाम के 
वक्त गुज़रता रहा इस दौरान बनी इसराइल में पैगम्बर होते रहे लेकिन फिर भी ये कौम बद से  बदतर होती रही ये किसी भी तरह अपने गुनाहो से तौबा तायब होने या उनको तर्क करने के लिए तैयार नही थी ये कौम बिलकुल आज हमारी उम्मते मुस्लिमा की तरह एक तरफ इबादतें किया करते थे तो दूसरी तरफ अल्लाह के अहकाम की खुली मुखालफत और खिलाफ वर्जि करते रहे उनकी इस दोगली पॉलिसी से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त नाराज़ हो गया उनके पास सबसे पहले मूसा अलैहि सलाम रसूल बनाकर भेजे गए और दुसरे रसूल हज़रत ईसा अलैहि सलाम थे हज़रत मूसा से हज़रत ईसा के बीच का वक्त 14 सौ साल बनता है उनके अलावा और बहुत बड़ी तादाद में अम्बिया भी भेजे गए लेकिन ये कौम सुधरने को तयार न थी यहां तक की उनकी शक्लों को अल्लाह पाक ने बन्दर और सूअर तक का बना दिया लेकिन ये फिर भी बाज़ न आये तब अल्लाह ने इन पर लानत कर दी 586 ईसा पूर्व में बख्त नसर ने उनके मुल्क पर हमला किया उनका हैकल तबाह और बर्बाद कर दिया हैकल में से ताबूत ए सकीना निकाल लिया 6 लाख से ज़्यादा यहूदियों को कत्ल कर डाला 2 लाख यहूदियो को कैद कर लिया और अपने साथ बाबुल ईराक ले गया शहर से बाहर यहूदीयो की एक बस्ती कायम की गई जिसका नाम तेल अबीब रखा गया 70 साल तक हैकल सफा हस्ती से मिटा रहा दूसरी तरफ बख्त नसर ने ताबूत ए सकीना की शदीद बे हुरमती की और उसे कहीं फेंक दिया कहा जाता है की इस बेहुरमती की हरकत का अज़ाब उसे इस तरह मिला के सन 539 ईसा पूर्व में ईरान के बादशाह सायरस ने बाबिल ईराक पर हमला कर दिया और बाबिल से उसकी सल्तनत का खात्मा कर दिया सायरिस एक नरम दिल और इन्साफ पसंद हुक्मरान था उसने तेल अबीब के तमाम कैदियों को आज़ाद करके उनको वापस येरुशलम जाने की इजाज़त दे दी और साथ में उनको हैकल के नए सिरे से तामीर करने की भी इजाज़त दे दी और तामीर में हर तरह की मदद करने का वादा भी किया 
अतः हैकल की दूसरी तामीर 537 ईसा पूर्व में शुरू हुई लेकिन तामीर का काम करने वालो को अपने ही हमवतन दुश्मनो की इतनी ज़्यादा मुखालफत झेलनी पड़ी के तामीर का काम बन्द करना पड़ा और डेरियस1 के दौरे हुकूमत तक बन्द रहा । उसकी हुकूमत के दुसरे साल में हज़रत ज़करिया अलैहि सलाम ने वहां के गवर्नर ज़रोबा बिल और सरदार काहिन यूशोवाह की हौसला अफ़ज़ाई की ताकि वो हैकल की तामीर की दुबारा कोशिश करें जिसपर उन्होंने पॉजिटिव रद्द ए अमल का इज़हार किया और साढ़े चार में 515-520 में तयार हो गया लेकिन इस बार इसमें ताबूत ए सकीना नही था इस के बारे में आजतक मालूम न हो स्का की बख्त नसर ने उसका क्या किया कुछ लोगो का कहना है उसने मुक़द्दस सन्दूक को तौहीन से बचाने के लिए अल्लाह के हुक्म से कहीँ महफूज़ जगह पर दफना दिया या छिपा दिया जिसका किसी इंसान को पता नही लेकिन यहूदी इसकी खोज में पूरी दुनियां को खोद देना चाहते हैं 
आम तौर पर इतिहासकार हैकल की दो बार तामीर और दो बार तबाही का ज़िक्र करते हैं लेकिन इतिहास को बारीकी से पड़ने पर पता चलता है की ऐसा नही है बल्कि हैकल को तीन बार तामीर किया गया लेकिन इसके साथ भी एक दिलचस्प कहानी वजूद में आई  हैरोड्स ने जब इसकी बेहतरीन तरीके से तामीर की तो यहूदियो के दिल में एक खौफ पैदा हुआ की अगर इसको नए सिरे से तामीर के लिए गिराया गया तो दोबारा तामीर नही होगा हैरोड्स ने उनको बहलाने के लिए कहा की वो सिर्फ इसकी मरम्मत करना चाहता है उसे गिराना नही चाहता चुनाचे सन् 19 ईसा पूर्व में उसने हैकल के एक तरफ के हिस्से को गिरा दिया और तब्दीली के साथ और बड़ा करके तामीर करवाया ये तरीका कामयाब रहा और यहूदियो की इबादत में बिना खलल डाले हैकल के थोड़े थोड़े हिस्से को गिरा दिया जाता और उसकी जगह नया और पहले से अलग हैकल वुजूद में आता रहा ये काम 18 महीने में मुकम्मल हुआ इस तरह तीसरी बार हैरोड्स के ज़रिये एक नया हैकल वजूद में आगया कुछ अरसे के बाद हज़रत ईसा अलैहि सलाम का ज़हूर हुआ अल्लाह के इस रसूल पर यहूदियो ने अपने मामूल के मुताबिक़ ज़ुल्म के पहाड़ तोड़ने शुरू कर दिए दरअसल यहूदी अपने मसीहा के इंतज़ार में थे जो दोबारा आकर उनको पहले जैसी शानो शौकत अता करता हज़रत ईसा अलैहि सलाम के ज़हूर होने के 70 साल बाद एक बार फिर यहूदियो पर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल हुआ इस बार इस अज़ाब का नाम टाइट्स था ये रूमी जरनैल बाबिल के बादशाह बख्त नसर से भी ज़ालिम साबित हुआ उसने एक एक दिन में लाखो यहूदियो को फना कर दिया उसने हैरोड्स के तामीर किये गए अज़ीमुश शान हैकल की ईंट से ईट बजा दी और यहूदियो को हमेशा के लिए येरुशलम से निकाल बाहर किया यहूदी पूरी दुनिया में बिखर कर रुस्वा होकर रह गए लगभग 18 या 19 सौ साल तक भटकने के बाद ब्रिटेन ने जब फिलिस्तीन पर कब्जा किया तो साथ ही एक नाजायज़ बच्चे इस्राइल को फिलिस्तीन में जन्म दे दिया इस तरह सदियो से दुखने खाने वाली अल्लाह की लानत ज़दा कौम को एक बार फिर से इस मुल्क इसराइल में इकट्ठे होने रहने की इजाज़त मिल गई लेकिन ये कौम अपनी हज़ारो साल पुरानी गन्दी फितरत से बाज़ न आई ये ब्रिटेन के जन्म दिए हुए इस्राइल तक महदूद न रहे एक बार फिर से अपने पड़ोसी मुल्को के लिए अपनी फितरत से मजबूर होकर मुसीबत बनने लगे 5 जून 1967 को इन्होंने सीरिया की गोलान पहाड़ी पर कब्जा कर लिया 1968 में अर्दन के मग़रिबी किनारे पर काबिज़ हो गए इसी साल मिस्र के इलाके पर भी कब्जा कर लिया आज इस कौम की शरारतें और फूर्तियां देखकर अंदाज़ा होता है की ये लोग आज से दो तीन हज़ार साल पहले भी किस कदर हारामी थे जिसकी वजह से अल्लाह ने उन पर लानत कर दी थी मुस्लिम मुल्को की बे गैरती और बुज़दिली की वजह से अब इसने पूरी दुनिया के मुस्लिम मुल्को में आग लगा कर रख दी है ।
अब इनका अगला मिशन जल्द से जल्द इस हैकल की तामीर है और इस हैकल में तख्त ए दाऊद और ताबूत ए सकीना को दोबारा रखना है इस हैकल की तामीर के नतीजे में ये पूरी दुनियां जंग की आग में लिपट जायेगी लेकिन इस कौम को इसकी कोई परवाह नहीं 
यहूदियो को जिस बस्ती तेल अबीब में बख्त नसर ने बंधक बना कर रखा था वो इसको आजतक नही भूले इन्होंने इस्राइल बनाने के बाद अपने एक शहर का नाम तेल अबीब रख दिया जो आज इस्राइल की राजधानी है जबकि हम मुसलमान उस मस्जिदे अक्सा को भूल गए हैं जहाँ हमारे नबी सल्ल ने मेराज का सफर शुरू किया था यहूदी आजतक बार बार गिराये गए हैकल को नही भूलते यहां तक की उसमे रखे गए ताबूत ए सकीना की तलाश में पूरी दुनिया को खोद देना चाहते हैं 
इस तारीखी दुश्मनी और यहूदी साजिशो का अध्ययन करने पर आज ये महसूस होता है की वो वक्त बहुत करीब आ गया है जब मुसलमानो के खिलाफ यहूदी एक बहुत बड़ी खुली जंग का ऐलान करेंगे क्योंकि ताबूत ए सकीना कहाँ है वो खुद नही जानते और उनका शक है की ताबूत ए सकीना या तो मदीना मुनव्वरा में रोज़ा ए रसूल सल्ल के नीचे  या फिर बैतुल्लाह के नीचे मुसलमानो ने छिपा रखा है ......तारीख में ऐसी एक कोशिश की भी जा चुकी है पोस्ट मज़ीद और लम्बा हो जाएगा अगर उसका ज़िक्र किया जाए

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